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कविता

बर्फबारी

अखिलेश कुमार दुबे


पूस-माघ की
हाड़ तोड़ सर्दियों में,
जब नीरव हो जाएगी प्रकृति।
पेड़-पौधे, पशु-पक्षी अवाक् होंगे सब
गिरेगी रुई के फाहे सी उजली बर्फ
जमीन, पेड-पौधे व पहाड़ सब तरफ होगी बर्फ ही बर्फ।
जब बच्चे बना रहे होंगे बर्फ के गुड्डे
पुतले और तरह-तरह की आकृतियाँ
फेंक रहे होंगे एक-दूसरे पर बर्फ के गोले
आएँगे बड़े शहरों के सैलानी पहाड़ों की ओर
हरिया की इजा फिर से रोशनी महसूस करेगी अपनी पथराई आँखों में।
बहुत साल पहले ऐसे ही मौसम में कोई सैलानी
सपने दिखा बहुत दूर ले गया
उसके भोले-भाले बेटे को,
इजा
बर्फ के अगले मौसम तक जी लेगी
उसकी यादों के सहारे।


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